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________________ जातीय एकता : एक विचारणा २३ चलती हैं, तब हर कोई कहता है कि कपड़ों का साधन रखिये । इसी प्रकार जब गर्मी जोर की पड़ती है और लू चलती हैं, तो उससे बचने के लिये भी कहा जाता है । जन्मजात कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नहीं है । जैनधर्म तो ब्राह्मण के कर्तव्य पालन करने वाले को ब्राह्मण, क्षत्रिय के कर्तव्य करने वाले को क्षत्रिय, वैश्य के कर्तव्य करने वाले को वैश्य और शुद्र के कर्तव्य पालन करनेवाले को शूद्र मानता है । देखो, व्यापार करने की दृष्टि रो सव व्यापारी समान हैं, किसी में कोई भेदभाव की बात नहीं है । किन्तु जिसने दिवाला निकाल दिया, उसे लोग दिवालिया कहते है, कोई साहूकार नहीं कहता । उस दिवालिये के पास में यदि कोई साहूकार अधिक उठे-बैठे, सलाह-मशविरा करे, ठंडाई छाने और खान-पान करे, तो लोग कहने लगते हैं कि ये भी इनके पाट पर बैठनेवाले हैं । इसीप्रकार यदि कोई पतित मनुष्य नीच जनों की संगति छोड़कर उत्तम जनों को संगति करने लगता है और अपना आचार-विचार सुधारता हुआ दिखता है, तो दुनियां कहने लगती है कि इसके दिन मान अच्छे आ रहे हैं, अब इसके दुर्गुण दूर हो जायेंगे । भाई, सोहबत का असर अवश्य होता है किसी फारसी कवि ने कहा है. तुरुमे तासीर, सोहबते -असर' । जैसा तुरूम (संग) होगा, उसमें वैसी तासीर आयेगी । । - संगति का असर सोहत या संगति का असर मनुष्यों पर ही नहीं, अपितु पशु-पक्षियों पर भी पड़ता है । एक बार एक राजा ने अपने अधिकारियों को आदेश दिया कि दो तोते ऐसे मंगा कर मेरे शयनागार में टांगो, जो कि अपनी सानी नहीं रखते हों ! बड़ी खोज के बाद दो तोते लाये गये और राजा ने उन्हें यथास्थान पिंजड़े में बन्द करके टंगवा दिया और उनके खाने-पीने की समुचित व्यवस्था करा दी। दूसरे दिन जब प्रभात होने को आया तो एक तोते ने ईश्वर की स्तुति परक उत्तम उत्तम श्लोक मंत्र आदि बोलना प्रारम्भ कर दिया । अपने साथी को बोलता देखकर दूसरे ने भी बोलना शुरू किया - छुरी लाओ, वकरा लाओ, गाय काटो । इसका मांस ऐसा होता है और उसका मांस वैसा होता है । राजा जहां पहिले तोते की स्तुति आदि सुनकर अति आनन्द का अनुभव करता हुआ प्रसन्न हो रहा था, रहां इस तोते की बोली सुनकर अति क्रोधित हुआ और द्वारपाल को आदेश दिया कि इस तोते के पिंजड़े की राजा का यह आदेश सुनते ही पहला तोता बगीचे की चावटी में फेंक दी। बोला---
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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