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________________ २८ धर्मकथा का ध्येय एक शब्द : अनेक रूप सद्गृहस्थो, आपके सामने कथा का प्रकरण चल रहा है। किसी वस्तु के कथन करने को, महापुरुषो के चरित-वर्णन करने को कथा कहते है। कथा शब्द के पूर्व यदि 'वि' उपसर्ग लगा दिया जावे तो 'विकथा' बन जाता है, और अर्थ भी खोटी कथा करना या वकवाद करना हो जाता है। शब्दो को उत्पत्ति धातुओं से होती है। किसी एक धातु से उत्पन्न हुए एक शब्द के आगे प्र वि सम् आदि उपसर्गों के लग जाने से उस धातु-जनित मूल शब्द का अर्थ बदल जाता है। जैसे 'हृ' धातु है, इसका अर्थ 'हरण करना' है, इससे प्रत्यय लगाने पर 'हियते' इतिहारः इस प्रकार से 'हार' शब्द बना। अव इस 'हार' शब्द के आगे 'आ' उपसर्ग लगाने पर 'आहार' शब्द बन गया और मूलधात्वर्थ बदल कर उसका अर्थ भोजन हो गया। यदि उसी 'हार' शब्द के भागे 'वि' उपसर्ग लगा दिया जाय, ओ 'विहार' शब्द बन जाता है और उसका अर्थ घूमना-फिरना हो जाता है। यदि 'वि' हटाकर "न' उपसर्ग लगा दिया तो 'प्रहार' शब्द बन जाता है और उसका अर्थ किसी पर शस्त्र आदि से वार करना हो जाता है। यदि 'प्र' हटाकर 'सं' उपसर्ग लगा दिया तो 'संहार', शब्द बन जाता है और उसका अर्थ सर्वथा नाश करना हो जाता है। यदि 'सं' को हटा कर 'परि' उपसर्ग लगा देते है, तो
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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