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________________ ३२३ सुनो और गुनो ! का। अब भाई, जो तुम्हें श्रेयस्कर मार्ग प्रतीत हो, उस पर चलो । यह भगवान का उपदेश है । अब यह निर्णय करना आपके हाथ में है कि हमें किस मार्ग पर चलना है। भाइयो, आप किसी मार्ग से अपने गन्तव्य स्थान को जा रहे है । अचानक आपके कानों में आवाज आई कि यहां से थोड़ी दूरी पर एक ऐतिहासिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। अब आप सोचते हैं कि गन्तव्य स्थान पर भले ही कुछ देरी में पहुंच जायेंगे । किन्तु मार्ग में आये इस ऐतिहासिक स्थान को तो देखते ही जाना चाहिए । अब आप वहां जाते हैं और वहां पर अकस्मात् ऐसी सामग्री मिल जाती है कि जिसका अन्वेषण बाप वर्षों से कर रहे थे। उसे देख कर आप का हृदय भानन्द से गदगद हो जाता है । भाई, आप वहां पर सुनने से ही तो गये, तभी वह अपूर्व ऐतिहासिक सामग्नी आपको प्राप्त हो सकी। अव आप अपने गन्तव्यस्थान की ओर आगे बढ़े कि कुछ दूर जाने पर यह बात सुनने में आई कि यहाँ से कुछ दूरी पर एक ऐसा स्वास्थ्य-प्रद स्थान है कि जहां के जल-वायु से अनेक रोग दूर हो जाते है और नीरोग व्यक्ति बलवान् बन जाता है । अब यद्यपि आपको गन्तव्य स्थान पर पहुंचना आवश्यक है, परन्तु फिर भी आप उस स्थान पर पहुंचते है और वहां की प्राकृतिक सुपमा, शस्य-श्यामला भूमि और उत्तम जल-वायु से प्रभावित होते हैं और विचार करते हैं कि ऐसा सुन्दर स्थान तो हमने आज तक भी बाही नहीं देखा। भाई, यह भी तो आपको सुनने पर ही दृष्टिगोचर हुआ। ___ अब आप उस स्थान को देखकर मागे वढ़े तो फिर सुनाई दिया कि यहां से बाई ओर एक ऐसी वस्तु है कि जिसे पा लेने पर आप सैकड़ों व्यक्तियों को एक साथ मूच्छित कर सकते हैं । यद्यपि यह कोई उत्तम वस्तु नहीं है फिर मी आप सोचेंगे कि ऐसी भी वस्तु पास में होनी चाहिए। यदि कभी ऐसा ही अवसर आजाय तो हम यात्म-रक्षा के लिए या धर्म और देश की रक्षा के लिए उसका उपयोग कर सकते है । यह विचार कर भाप वहां जायेंगे और वहा से उसे लाने का प्रयत्न करेंगे। इसी प्रकार फिर आगे चलने पर आपको फिर सनाई दिया कि यहां समीप में कोई सिद्ध पुरुप रहते हैं और उनके दिये मंत्र से सभी अभीष्ट कार्य सिद्ध हो जाते हैं। यह सुनकर आप उस सिद्धपुरुप के पास भी जायेगे और उससे कोई विद्यामंत्र आदि लेने का उपाय करेंगे । अब इससे भी आप आगे चले और सुनाई दिया कि यदि अब आगे बढ़े तो आपके पैर वहीं चिपक जावेंगे और घर पर जीवित नहीं पहुंचेगे । यह सुनने के पश्चात् कोई यह भी कहे कि वहां पर सुन्दर उद्यान है, राजभवन है,
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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