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________________ जातीय एकता : एक विचारणा २१ तब प्रश्न खड़ा होता है कि ये जाति और पन्थ के झगड़े क्यों खड़े हो गये ? जब हम इस प्रश्न पर विचार करते है और भारत के प्राचीन इतिहास को देखते हैं, तब उसका उत्तर हमें मिलता है । वह यह कि पूर्व समय में जो लोग आचार से पतित हो गये और जिनका व्यवहार अभ्रम होने लगा, उस समय हमारे पूर्वजों ने सोचा कि यदि इन पतित और हीनाचारी लोगों के साथ सारी समाज का सम्पर्क बना रहेगा, तो सब होनाचारी और भ्रष्ट हो जायेंगे | अतः उनके दुर्गुणों से बचने के लिए ये जातिवाद की दीवालें खड़ी कर दी गई और कह दिया गया कि जो कोई उन पतित लोगों के साथ खान-पान करेगा, वह दंडित किया जायगा । यद्यपि उनका हृदय नहीं चाहता था कि हम ऐसा करें । परन्तु दिन पर दिन बिगड़ती हुई सन्तान की रक्षार्थ उन्हें ऐसा करने के लिए विवश होना पड़ा । जैसे आपके मोहल्ले या गांव में कोई स्त्री तेज नजर वाली हो, या खोटे नक्षत्र में जिसका जन्म होता है तो उसकी दृष्टि में जहर आ जाता है और उसकी नजर जिस पर पड़ जाती है, उस बालक को कष्ट उठाना पड़ता है । जब ऐसी स्त्री या पुरुष किसी गली से निकलता है, तो घरवाले अपने बच्चों को सावधान कर देते है कि घर से बाहिर नहीं निकलना, वाहिर चुड़ैलन है या होवा है, वह तुम्हें खा जायगा | यह भय उन्हें घर से बाहिर नहीं निकलने देने के लिए है । ने भी भावी सन्तान के सदाचार को सुरक्षित रखने के लिए यह पावन्दी लगा दी कि इन पतित पुरुषों के साथ जो भी खान-पान करेगा और उनकी संगति में रहेगा, वह जाति से वाहिर कर दिया जायगा, वह धर्म भ्रष्ट समझा जायगा । इस प्रकार जिन-जिन लोगों के आचार-विचार और खान-पान एक रहे, उन-उनका एक-एक संगठन होता गया और कालान्तर में वे एक-एक स्वतंत्र जातियां वन गई । इसी प्रकार अपने पूर्वजों आज भी अनेक अवसरों पर हमें अपने घर में भी यह भेद-भाव व्यवहार में लाना पड़ता है । जब घर में किसी एक बच्चे को कुकरखांसी, खुजली या और कोई संक्रामक रोग हो जाता है, तब अपने ही दूसरे बच्चों से कहना पड़ता है कि देखो --उससे दूर रहना, उसके कपड़े मत पहिनना और न उसका जूंठा पानी पीना । अन्यथा तुम्हें भी यही बीमारी लग जायगी । डाक्टर और वैद्य भी यही परामर्श देते हैं । और उस पर सबको अमल करना पड़ता है | यहाँ पर आप कह सकते है कि उस बीमार वालक के स्वस्थ हो जाने के बाद तो वह प्रतिबन्ध उठा दिया जाता है । इसी प्रकार जातियों पर से अब तक यह प्रतिवन्ध क्यो नही उठाया गया ? भाई, इसका उत्तर यह है कि जो लोग प्रारम्भ मे पतित हुए थे, वे और उनकी सन्तान दिन पर दिन पतित
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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