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________________ सिंहवृत्ति अपनाइये ! ' ३१५ कुछ नहीं ले गया है ? बड़ा अद्भुत चोर है । अवश्य ही यह आपत्ति का मारा भला आदमी प्रतीत होता है । अतः इसको अवश्य ही सहायता करनी चाहिए। यह विचार करके तीसरे दिन रात के समय जब सब लोग सो गये, तब उन्होने मोहरो से भरी एक थैली मकान के बाहिर चबूतरे पर रख दी । यथासमय वह चोर आया। चबूतरे पर रखी थैली को देखते ही वह समझ गया दि सेठ ने मेरे लिए ही यह यहीं रखी है। परन्तु मुझे इस प्रकार से नहीं लेना है। तो जब अपनी होशियारी से मकान का द्वार खोलं और तिजोरी का ताला भी तरकीब से खोल, तभी माल लेकर जाऊं, तभी मैं अपने कर्तव्य को निभा सकूगा, अन्यथा नहीं। ऐसा विचार कर वह उस थैली को मकान के भीतर फेंककर और मकान का द्वार बन्द करके चला गया। वह चोर अपनी चोरी की कला के विरुद्ध किसी का माल नहीं लेना चाहता और यह सेठ भी विना मांगे ही देना चाहता है। अव सेठजी सावधान रहने लगे कि किसी दिन यदि मेरी इससे भेट हो जाय तो मैं इससे बात करूं ? जब दश-बारह दिन तक भी कोई अवसर नहीं मिला तो वे एक रात को चुपचाप मकान के एक कोने में छिपकर बैठ गये। और सेठानी से कहते आये कि आज मुझे एक मेले में दुकान लेकर जाना है तो तुम खाना जल्दी बनाकर और कटोर दान में भर कर रखो। तब तक मैं नीचे जाकर दुकान में सामान बांधता हूँ। जैसे ही सेठ ने चोर को आते हुए देखा, वैसे ही वे चुपचाप रसोई घर में पहुंचे-जहाँ पर कि सेठानी खाना बना रही थी। वहां जाकर उन्होने सेठानी से कहा-अपने पुत्रियां तो तीन हैं, किन्तु पुत्र एक भी नहीं है। घर में सम्पत्ति अपार है, पर इसे संभालने वाला कोई भी नहीं है। बतायो-~-यह सब किसे संभलाई जावे 1 सेठानी बोलीजिसे आप उचित समझें, उसे ही संभला देवें । सेठ बोला-मुझे तो वह चोर ही योग्य जंच रहा है। सेठानी ने कहा तो उसे ही संभला दो। सेठने फिर पूछा--तुम नाराज तो नहीं होओगी.? वह बोली–मैं क्यों नाराज होने लगी। मेरी तो तुम्हारी रानी में ही प्रसन्नता है। यह सुनते ही सेठ उठा और जहां वह चोर छिपा वैठा था, वहां जाकर उसका हाथ पकड़ लिया। यह देखते ही चोर बोला-सेठजी, मुझे क्यों पकड़ते हो ? मेरे विना मेरे बाल बच्चे भूखें मर जायेंगे। सेठ बोला--- मैं धन देता हूं, तू लेजा और अपने बाल बच्चों को पाल । क्यों चोरी करने का पाप करता है । वह बोला सेठजी, मेरा नियम है कि अपनी चोरी का ही माल खाऊंगा, किसी के दिये हुए दान का नही खाऊंगा। सेठजी उसकी बात को अनसुनी करते हुए सेठानी के पास उसका हाथ पकड़े
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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