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________________ आर्यपुरुप कौन ? २६७ कोई किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ हैं । सेठ ने कहा-आपका यह बडप्पन है कि आप इस प्रकार कहते हैं। परन्तु मैं तो अपनी भूल के कारण अधम पुरुप ही हूं। तव भाचार्य ने सेठ को और उनके सारे संघ को धर्म का हृदयग्राही उपदेश दिया और सब लोग सुनकर बड़े प्रसन्न हुए । उपदेश के अन्त में सेठ ने आचार्य महाराज से गोचरी को पधारने के लिए प्रार्थना की । और उन्होंने 'मी गोचरी को जाने के लिए विचार किया । __ इसी समय सौधर्म स्वर्ग का शन्द्र अपनी सभा में बैठा हआ कह रहा था कि जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में धन्नावह सेठ के समान और कोई परोपकारी और धर्मात्मा गृहस्थ नहीं है। यह सुनकर सर्व देवता बहुत प्रसन्न हुए। किन्तु एक मिथ्यात्वी देव को शकेन्द्र के वचनों पर विश्वास नहीं हुआ और वह उसकी परीक्षा करने के लिए वहां से चलकर यहां आया, जहां पर कि धन्नावह अपने साथियों के साय ठहरा हुआ था। सब संघ वाले चातुर्मासिक साधुओं की पारणा कराने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे कि इस देवने आकर सत्र की भोजन-सामग्री को साधुओं के लिए अग्राह्य कर दी। भाइयो, मनुष्य इस प्रबल अन्तराय कर्म को इसी प्रकार दूसरों के भोगउपभोग आदि में विघ्न करके ही बांधत्ता है और फिर पीछे रोता है कि हाय, मेरे ऐसे अन्तरायकर्म का उदय है कि पुरुषार्थ करने पर भी मुझे यथेष्ट भोगोपभोगों की प्राप्ति नहीं हो रही है और लक्ष्मी नहीं मिल रही है। हां, तो सब साधु-सन्त को गोचरी के लिए निकलने की आज्ञा देकर आचार्य गोचरी के लिए निकले । वे एक-एक कर सबके रसोई-घरों में गये, परन्तु कहीं पर भी कल्पनीय वस्तु दृष्टिगोचर नहीं हुई । सर्वत्र कुछ न कुछ अकल्पपना दिखा। धीरे-धीरे घूमते हुए जब वे धन्नावह सेठ के डेरे पर पहुंचे तो वहा पर भी कोई वस्तु ग्रहण करने के योग्य नही दीखी और जो भी वस्तु सेठ ने उन्हें बहराने के लिए उठाई, उसे भी आचार्य ने 'एसमपि न कप्पइ' कह कर लेने से इनकार कर दिया । यह देखकर सेठ बहत घबडाया और अपने मन में अपने दुष्कर्मो की निन्दा करता हुमा सोचने लगा कि मेरे पास और भी कोई ऐसी वस्तु है, जो इनके कल्पनीय हो ? तभी साथ मे लाये गये घी के पीपों की और उसका ध्यान गया और उसने आचार्य महाराज से निवेदन किया--महाराज, कोठार के तम्बू में पधारिये, वहां पर आपके लिए कल्पनीय घी विद्यमान है । आचार्य ने वहा जाकर के अपना पात्र रख दिया । देवता ने जो घी को पात्र में बहराते देखा तो उसने आचार्य को सुनने और देखने की शक्ति को अपने विक्रियावल से कम कर दी । अव सेठ पात्र में घी वहराता
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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