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________________ २८२ प्रवचन-सुधा चारित्र को बताया है। इसके विपरीत सभी संसार के कारण है। सच्चा धर्म तो ये तीन रत्न ही हैं 1 कहा भी है सदृष्टि-ज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः । यदीय प्रत्यनीकानि भवन्ति भवपद्धतिः ।। अर्थात् धर्म के ईश्वर तीर्थंकर देवों ने सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र को सत्य धर्म कहा है। इनके विपरीत मिथ्यादर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या चारित्र संसार के कारण हैं । ऐसी जिसके दृढ़ आस्था होती है, वही व्यक्ति भवसागर से पार होता है। भाइयो, भौतिक कार्यो के करने के लिए भी उसमें आस्था और निष्ठा की आवश्यकता है । विना आस्था के उनमें भी सफलता नहीं मिलती है । आज जितनी भी वैज्ञानिक उन्नति के चमत्कार दृष्टिगोचर हो रहे हैं, वे सब एक मात्र निष्ठा के ही सुफल हैं। वर्तमान में आध्यात्मिक निष्ठा वाले व्यक्ति तो इने-गिने ही मिलेंगे। परन्तु जीवन उन्हीं का सफल है जो कि लक्ष्मी के चले जाने पर और अनेक आपत्तियों के आने पर भी अपनी निष्ठा से विचलित नहीं होते हैं। गुरु की अवहेलना न करो आप लोग गृहस्थ है अतः आप को भौतिक उन्नति के विना भी काम नहीं चल सकता है । इसके लिए यह आवश्यक है कि आप धर्म पर श्रद्धा रखते हुए धर्म यक्त भौतिक कार्यों को निष्ठापूर्वक करते रहें । आपको सच्चे गुरुओं पर आस्था रखनी चाहिए कि 'भवाघेस्तारको गुरुः' अर्थात् संसार-सागर से तारने वाला गुरु ही है, उसके सिवाय और कोई दूसरा नहीं है। ___ 'उहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा, होति मिच्छं पडिवज्जमाणा" भावार्थ यह है कि..-गुरु को यह नहीं मानना चाहिए कि ये छोटे हैंमुझ से कम ज्ञानी है, ऐसा विचार कर उनका अपमान करना ठीक नहीं । आज आप लोग अक्सर ऐसा सोचने लगते हैं कि ये गुरु तो मेरे ही सामने पैदा हुए हैं, उन्होंने तो कल ही दीक्षा ली है, अभी तो इनको बोलने का भी तरीका याद नही है। मैं तो इनसे बहुत अधिक जानता हूं और क्रियावान् भी हूं। भाई, ऐसा विचार करने से भी गुरु की अवहेलना होती है और मिथ्यात्व कर्म का वध होता है। जिनके मिथ्यात्व कर्म बंधता है और उत्तरोत्तर पुष्ट होता रहता है, उन्हें बोधि की प्राप्ति दुर्लभ है। इसलिए आप लोगों को सदा
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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