SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ प्रवचन-सुधा किया और मन को मुर्दार बनालेवें ! आज प्रायः ऐसे ही मनुष्य देखने में आते हैं कि बातें तो बड़ी-बड़ी करेंगे और डीग सरदारपने की हांकेगे । पर जहां उदारता दिखाने का और कुछ देने का काम आया, तो स्वयं तो देंगे ही नहीं, किन्तु मीन-मेख निकाल करके देने वालों को भी नहीं देने देंगे। वे अपने भीतर यह दुर्भाव रखते हैं कि यदि कार्य प्रारम्भ हुआ और दूसरे लोगों ने न दिया तो लोक-लाज के पीछे मुझे भी देना पड़ेगा । इसलिए ऐसे विचार वाले व्यक्ति दूसरों के देने मे अन्तराय बनते हैं और स्वयं देने का तो काम ही नहीं है । भाई, उदार बनना सीखो । यह लक्ष्मी चंचल है, और सदा किसी के पास रहने वाली नहीं है। जो इसको पकड़ने का प्रयत्न करते है, उनसे यह छाया के समान दूर भागती हैं । और जो इसे ठुकराते अर्थात विद्यालय, औषधालय और दीन-अनाथों की सेवा-सुश्रूपा आदि सत्कार्यो में लगाते हैं और खुले दिल से दान देते हैं, उनके पीछे-पीछे यह छाया के समान दौड़ती हुई चली आती है । कहा भी है कि- 'लक्ष्मी दातानुसारिणी और बुद्धिः कर्मानुसारिणी। अब आपको जो रुचे सो करो। जब कोई काम करना ही है तब उसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए और 'शुभस्य शीघ्रम्' की उक्ति के अनुसार उसे शीघ्र ही सम्पन्न करना चाहिए। उदार और सरदार सदा ही उदार और सरदार बने रहेंगे और अनुदार और मुर्दार सदा ही दुख पावेंगे । इसलिए सत्कार्य के करने में आप लोगों को उदारता और सरदारपने का ही परिचय देना चाहिए । वि० स० २०२७ कातिक सुदि ७ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy