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________________ २४२ प्रवचन-सुधा प्रतिनिधि थे । तब पार्वतीजी ने कहा-अरे मदन, तू मेरी ओर से जा। अन्यो का मुझे भरोसा नहीं है । यदि पत्री को मजूर कर लिया तो मैं पजाव में नहीं विचरने दूंगी। मदनलालजी मे इतनी विद्वत्ता थी, तब उन्होने उन्हे अपना प्रतिनिधि बनाया। भाई, भीतर मे विद्वत्ता हो और समय-सूचकता हो तो वह छिपी नहीं रहती है । एक बार रिखराजजी स्वामी यहा जोधपुर मे पधारे और बूंदी मोहल्ले वाले स्थानक मे ठहर गए । उन्होने रात को महाभारत सुनाना प्रारम्भ किया । उनकी प्रवचन शैली उत्तम रोचक थी और कण्ठ भी सुरीला था। अत जनता खूब आने लगी। और सारे शहर में उनकी प्रशसा होने लगी। तब यहा पर कविराज मुरारदानजी बहुत अभिमानी विद्वान् थे। वे समझते ये कि इन दूढिया साधुओ मे कोई विद्वान नहीं है। फिर ये क्या महाभारत का प्रवचन करते होगे । फिर भी प्रशसा सुनकर सौ-पचास आदमियो को साथ लेकर उनके प्रवचन मे गये । कुछ देर सुनने के बाद मुरारदानजी बोले-महाराज ! बताइये कि जब युधिष्ठिरजी पानी पीने के लिए गये तो उनसे कौन से प्रश्न पूछे गए थे और उन्होने क्या उत्तर दिया था ? तब स्वामी रिख राजजी ने शार्दूलविक्रीडित छन्द मे सस्कृत भाषा के द्वारा जो उत्तर सूनाया तो कविराजजी दातो तले अगुली दवाकर रह गए और बोले--महाराज, माफ करना। मुझे नही मालूम है कि आप लोगो मे भी ऐसे दिग्गज विद्वान है ? मेने तो हिन्दी मे ही पूछा और आपने सस्कृत छन्द मे उत्तर दिया । भाई, भीतर मे मान हो, तभी धाक जम सकती है। कहा भी है विन पूजी के सेठजी, विना सत्व को राज । विना ज्ञान के साधुता, कैसे सुधरे काज ।। जब भीतर मे विद्वत्ता और प्रतिभा होती है, तभी ऐसे अवसरो पर वह यश प्राप्त कर पाता है । अन्यथा पराजय का अपमान सहन करना पड़ता है। यह प्रतिभा और विद्वत्ता कब प्राप्त होती है ? जवकि मनुष्य ने एकाग्रचित्त होकर ज्ञान की भक्ति, आराधना और उपासना की हो। जो सतत ज्ञानको भक्ति और उपासना करते हैं, स्वाध्याय मे सलग्न रहते हैं और गुरुजनो का विनय करते है, उनका ज्ञान संसार में उनके यश को चिरस्थायी बनाता है और वे स्वय चिरस्थायी मुक्ति के निवासी हो जाते हैं । आज ज्ञान पचमी के दिन आप लोगो को नियम लेना चाहिए कि हम प्रतिदिन कुछ न कुछ नवीन ज्ञानार्जन करेंगे और ज्ञानी जनों के प्रति बहुमान रखेंगे ? ज्ञानाराधना के लिए कहा है कि
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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