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________________ विज्ञान की चुनौती २२३ हमारे लिए लज्जा की वात नहीं है और क्या उनका हमको उपालम्भ और चुनौती देना सत्य नही है । यह हम लोगों की भारी भूल हैं कि जो हम लोग अपने ही भण्डार का उपयोग नहीं कर रहे हैं । अन्यथा हम भी---- करते नवाविष्कार जैसे, दूसरे हैं कर रहे। भरते यशोभण्डार जैसे, दूसरे हैं भर रहे ॥ हमारी दशा हमारी दशा उस सेना के समान हो रही है, जिसके पास सर्व प्रकार के शस्त्रास्त्र होते हुए भी प्रमाद-ग्रस्त होने के कारण जो शत्रुसेना से उत्तरोत्तर पराजित हो रही है ! जिस व्यापारी के पास व्यापार के सभी साधन होते हुए भी यदि वह लाभ से वंचित रहता है, और दुसरे उससे लाभ उठा रहे हों, तो यह उसका प्रमाद और दुर्भाग्य ही कहा जायगा । विज्ञान आया कहां से ? आकाश से नहीं टपका है या पृथ्वी से नहीं निकला है । किन्तु यह विचारशील व्यक्तियों के मस्तिष्क से ही उपजा है। भगवान महावीर ने अपनी अपूर्व साधना के बलपर जिन सूक्ष्म एवं विज्ञान-सम्मत तत्त्वों का निरूपण किया और हमारे पूर्ववत्ती आचार्यो ने सैकड़ों वर्ष तक जिसे स्मरण रखा, तथा शास्त्रों में लिपिबद्ध किया, उन्हीं के उत्तराधिकारी हम लोग अकर्मण्य बने उनका कुछ भी उपयोग नहीं कर रहे हैं। संसार आज उन तत्वों की छानबीन करके उनके सत्य होने की मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रहा है और हमारी ओर विकास भरी दृष्टि मे देखकर हंस रहा है। एक मोर तो हम यह कहते हैं कि हमारा ज्ञान सर्वज्ञ-प्रतिपादित है और दूसरी ओर उसे विज्ञान के द्वारा सत्य सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं करते हैं, यह हम लोगो की भारी कमजोरी है। यदि हम लोग पुरुपार्थ करके आज भी उसे' विज्ञान-सिद्ध करके संसार के सामने रखे तो उसका मुख बन्द हो जाय । कोई भी वस्तु कितनी भी बढिया क्यों न हो, परन्तु जब तक उनका प्रयोग और उपयोग करके उसका महत्व संसार को न दिखाया जाय, तब तक उसका महत्व संसार कसे आक सकता है ? वैद्य के पास अम्बर है, कस्तरी है और उत्तम-उत्तम रम और औपधियां है । परन्तु जब तक वह रोगियों पर प्रयोग करके उनका चमत्कार संसार को न दिखावे, तब तक उनका प्रसार कैसे हो सकता है ? यही कारण है कि आज दुनिया को जितना विश्वास अंग्रेजी दवाइयों और इजेक्शनों पर है, उतना विश्वास आयुर्वेदिक औपवियों पर नहीं है । यदि हमारे ये देशी चिकित्सक अपनी औषधियों का चमत्कार संसार को दिखाते तो सारा संसार उन्हें नमस्कार करता नजर आता । आज
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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