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________________ २१४ प्रवचन-सुधा कल हम लोग नशे में धुत्त थे, सो आपको पकड़ लाये । आपने भी तो उस समय कुछ विरोध नहीं किया । अव चलिये, हम लोग आपको वापिस आपके घर पहुंचा आते हैं । अव सव भंगी मेतार्य को लिए जुगमन्दिर सेठ के घर पर पहुंचे और बोले---सेठ साहब, अपने कुवर साहब को संभालो। कल हम लोग नशा किये हुए थे, उससे हम अजानपन में आपके कुंवर साहब को पकड़ ले गये । अव हमें माफी देवें । आप तो हमारे अन्नदाता और प्रतिपालक है । हम लोगों के घर में क्या ऐसा सर्वाङ्ग सुन्दर और भाग्यशाली पुत्र पैदा हो सकता है ? इसने हमारे घर पर कुछ भी नहीं खाया-पिया है। तभी सेठ के पड़ोसी और स्वजन-परिजन आ गये और बोले-सेठसाहब, कुवर निर्दोप है, उन्हें किसी ने भी भ्रप्ट नहीं किया है। चोर-डाकू भी लोगों का अपहरण करके ले जाते है, तो क्या घरवाले उन्हें वापिस रवीकार नहीं करते हैं ? अतएव आप इन्हें स्नान कराके और दूसरे वस्त्र पहिता दीजिए। इस प्रकार देव ने सबके हृदयों में परिवर्तन कर दिया। तब सेठ ने मेतार्य को स्नान कराया. कृतिकर्म और मंगल-प्रायश्चित्तआदि किये और नये वस्त्राभूपण पहिना दिये । अब मेतार्य घर में ही रहने लगा। शर्म के मारे वह घर से बाहिर नहीं निकलता था। उस देव ने जाते समय एक चमत्कारिणी बकरी मेतार्य को भेंट की जो दूध भी ढाई सेर देती और सोने की मेंगनी (लेंडी) करती। अब यह बात चारों ओर फैल गई और दूर-दूर से लोग उसे देखने के लिये आने लगे। चारों ओर अब सेठजी के पूण्य की चर्चा होने लगी। धीरे धीरे यह वात राजा श्रेणिक के कान तक पहुंची। उन्होंने अभयकुमार से पूछा-क्या सोने की मेगनी देने वाली बकरी की बात सच है ? अभयमार ने कहा--हां महाराज सत्य है। पुण्यवानी से और विद्या-मंत्रादि देवाज्ञा के बल से कौन सी सिद्धि नहीं हो सकती है ? श्रेणिक ने कहा मैं भी उस बकरी को देखना चाहता हूं। अभयकुमार ने सेठ के घर आदमी भेजे । उन्होंने जाकर कहा-सेठ साहब, आपकी उस अद्भुत बकरी को महाराज श्रेणिक देखना चाहते हैं । मेतार्य ने वकरी देने से इन्कार किया तो वे राजा के आदमी उस बकरी को पकड़ कर ले गये। जब वह राजाश्रेणिक के सामने लायी गई, तब उसने ऐसी दुर्गन्धित मेंगनी की कि जिनकी बदबू से राजमहल भर गया और वहां पर ठहरना कठिन हो गया। तब राजा श्रेणिक ने मेतार्य को बुलवाया और कहां-अरे, तूने हमारे साथ भी चालवाजी की ? मेतार्य वोला-महाराज, आज तो आपने बकरी पकड़ मंगवायी। कही आगे आप दूमरों की बहूबेटियों को पकड़ मंगवायेगे ? कहीं राजाओं को ऐसी अनीति करनी चाहिए ?
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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