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________________ २१२ प्रवचन-सुधा मेतार्य को प्रतिबोध भाइयो, अब इघर मेतार्यकुमार को आनन्द में मग्न देख कर उसके स्वर्गवासी मित्र देव ने अवधिज्ञान से देखा कि मेरा साथी देव राजगृह नगर में जुगमन्दिर सेठ के यहां काम-भौगों में मग्न हो रहा है और उसे अपने पूर्व भव की कुछ भी याद नहीं आ रही है, तब वह यहां आया और उसे सोते समय स्वप्न में कहा-मेतार्य, तू पूर्व भव की सव बाते भूल गया है और यहा आकर विषय-भोगों में निमग्न हो रहा है। अब तू इनको छोड़ । इनका सग भयंकर दुखदायी होता है । अतः अब आत्मकल्याण का मार्ग पकड़। मेतार्य ने स्वप्न में ही कहा-मैं इतनी पुण्यवानी भोगते हुए सर्व प्रकार से आनन्द में हूं। यदि मैं इन्हें छोड़कर साधु बन जाऊंगा तो मेरे ये मां-बाप अकाल में ही मर जावेंगे । और ये मेरी प्यारी स्त्रियां भी तड़फ-तड़फ कर मर जावेगी । अतः मैं अभी धर-वार नहीं छोड़ सकता हूं। देवता ने उससे फिर कहा--देख, मेरा कहना मान ले, अन्यथा पीछे पछताना पड़ेगा । ये स्वजन-सम्बन्धी कोई तेरे साथी नहीं है । ये तो नदी-नाव के समान क्षणिक मुसाफिरी के साथी है और अपना घाट आते ही उतर कर चले जावेंगे। संसार के सव सम्बन्ध मिथ्या है । तू इनमें मत उलझ . और अपना कल्याण कर। इस प्रकार देव ने उसे बहुत समझाया । मगर उसके ध्यान में एक भी बात नहीं जमी । भाई, आज भी आपके पास ठाठ-बाट हैं और वर्षों से सासारिक सुख भोग रहे है। फिर भी यदि इधर आने को कहा जाता है तो आप लोगों को बहुत बुरा लगता है । परन्तु आप लोगों की बात हो कितनी-सी है, बड़े-बड़े वलदेव और चक्रवर्ती भी भोगों से मुख मोड़कर चले गये तो उन्होंने अमर पद पाया और जिन नारायणप्रतिनारायणों ने इन्हें नहीं छोड़ा, वे संसार में डूबे और आज भी दुःख भोग रहे है। निदान हताश होकर वह देव चला गया और मेतार्य भोगो का मंवरा वना हुआ उनमें ही निमग्न रहा । अव देव ने मेतार्य को सम्बोधन के लिए एक दूसरा ही उपाय सोचा। उसने मेतार्य के जन्म देने वाले भंगी की बुद्धि मे भ्रम उत्पन्न कर दिया कि तू अपने पुत्र को सेठ के यहां से वापिस ले आ। तेरा भी जन्म-जन्म का दारिद्रय नष्ट हो जायगा। और तू भी सेठ के समान सुख भोगेगा। उसने यह बात अपने साथी अन्य भंगियों से कही ! सब उसके लड़के को छुड़वाने के लिए इकट्ठे होकर सेठ के घर पर आये। उस समय मेतार्य घर के बाहिर चबूतरे पर बैठा हुआ दातुन कर रहा था । रास्ते में भंगी चिल्लाते हुए आये कि हम अपना लड़का लेकर ही लौटेंगे । लोगों के पूछने पर उन्होने बताया कि मेतार्य
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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