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________________ देव तू ही, महादेव तू ही नहीं रह सकती। मेरे पीछे ही तेरा सारा सुख-सौभाग्य है। इसलिए तू इन वावली सी बातों को छोड़ दे। तब मीरा ने उत्तर दिया-~-'लिया में तो सांवरिया ने मोल राणा' 'सांवरिया' के 'सा' का अर्थ है वह, जो अपना था, उसे 'दरिया' अर्थात् मैंने बर लिया है । जो मेरी वस्तु थी, उसे मैंने वरण कर ली है । अव मेरा ध्यान उसके सिवाय किसी दूसरे की ओर नहीं है। उसके इस उत्तर से रुष्ट होकर राणा ने उसे कितने ही कष्ट दिये। मगर वह रंच मात्र भी अपने ध्येय से चल-विचल नहीं हुई और अपने स्वरूप में मस्त रही । उसका आत्मिक चिन्तन उत्तरोत्तर आगे बढ़ता ही गया और आज सारा भक्त समाज मीरा का पथानुगामी एवं भक्त बन रहा है। भाइयो, भगवान महावीर ने हमें प्रारम्भ से ही यह शिक्षा दी है कि प्रत्येक आत्मा अपना भला और बुरा करने में स्वतन्त्र है। अतः दूसरा कोई सुख-दुःख देता है, यह भ्रम छोड़कर दूसरे पर इष्ट-अनिष्ट बुद्धि को छोड़कर आत्म-स्वरूप में तू स्थिर रह । अपने को मेरे समान समझ । और जिस मार्ग पर चलकर मैं साधारण आत्मा से परमात्मा बना हूं, तू भी इसी मार्ग को अपना करके आत्मोद्धार कर ! दीनवृत्ति को छोड़कर मनस्वी और स्वाभिमानी बन । संसार के सबसे उत्तम गुण तेरे ही भीतर भरे हुए हैं । संसार में देव भो तू ही है. महादेव भी तू ही है, संसार की समस्त ऋद्धि और समृद्धि तेरी आत्मा के अन्दर विद्यमान है । इन कर्म-पटलों को दूर करके उन्हें प्रकट कर । फिर तुझे सर्व ओर आनन्द ही आनन्द दृष्टि गोचर होगा । यह अवसर इस मानवयोनि में ही प्राप्त होता है, अन्य पशु-आदि योनियों में नहीं। अतः इस अवसर से मत चूक और अपने ध्येय को प्राप्त करने का पुरुषार्थ स्वाभिमानी वन करके कर । वि० सं० २०२७ आसोज सुदि ५ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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