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________________ देव तू हो, महादेव तू ही देता कि भाई इसके कूड़ा कचरा फेंकने से मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ता है । मैं तो जैसा हूं, वैसा ही हूं । मेरे हाथ, नाक, कान, जीभ आंख और हाथ-पैरों में कोई कमी या कसर थोड़े ही पड़ती है । कसर तो शोक, चिन्ता और दुःख से पड़ती है । सो यह सब गुरु महाराज ने दूर कर दी है । अब मुझे दुःख का क्या काम है ? पड़ोसी भी उसकी और उसकी स्त्री की यह शान्ति देखकर आश्चर्य करता है, परन्तु अपनी हरकत से बाज नहीं आता है । एक दिन नगर के बाहिर महादेव जी का मेला था। पड़ोसी ने स्नानकर वढ़िया कपड़े पहिने और एक नई मटकी में मल-मूत्रादि भर कर उसे ढक्कन ऊपर से बांध दिया और उसके ऊपर एक शाल रखकर और हाथ में छड़ी लेकर घर से बाहिर निकला । इसी समय वह भला आदमी भी मेले में जाने के लिए घर से बाहिर निकला । उसे देखते ही यह दुष्ट बोला- भाई साहब ! यदि यह घड़ा आप मेले तक पहुंचा देंगे तो बड़ी कृपा होगी । उसने भी हंसते हुए वह घड़ा ले लिया और मेले को चल दिया । वह उसके पीछे इस शान से छड़ी घुमाते हुए चल रहा था, मानों यह मालिक है और नौकर मटकी लिए आगे चल रहा है । जव वे दोनों मेले के बीच में पहुंचे तो उस दुष्ट ने सबके सामने अपनी छड़ी को घुमाकर उस घड़े पर दे मारी । घड़े के फूटते ही उसमें भरी हुई सारी गन्दगी से वह भला आदमी लथपथ हो गया । फिर भी वह खिलखिलाकर हंसने लगा । यह देख पड़ौसी वोला- भाई, क्यों हंसे ? वह बोलाभाई, आप जितने भी प्रसंग मेरे बुरे के लिए बनाते हैं। उनसे मेरा बड़ा उपकार हो रहा है । अनेक भवों के संचित ये सव दुष्कर्म आपके निमित्त से उदीर्ण होकर निर्जीण हो रहे हैं। यदि आप निमित्त न बनते तो पता नहीं, आगे ये कब उदय में आते और मैं उस समय समभाव से इन कर्मों का उदय सहन भी कर पाता, या नहीं ? आपके सुयोग से मैं अभी ही इस कर्म-भार से हलका हो गया हूँ । इसलिए आपको लाख-लाख धन्यवाद है । यह सुनते ही वह पड़ौसी उनके चरणों में पड़ गया और कहने लगा- भाई, मुझे माफ करो । आज तक मैने आपको कोधित करने के लिए अनेक प्रयत्न किये और आज तो सबसे अधिक दुर्व्यवहार इस भरे मेले में आपके साथ किया । परन्तु आपने अपनी अगाध शान्ति का परिचय दिया है । आप में सच्ची मानवता के दर्शन आज मैंने किये है। मैं अपने अपराधों की सच्चे दिल से क्षमा याचना करता हूं आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे क्षमा करेंगे । आप अपने कपड़े खोल दीजिए, मैं अभी तालाव में धोकर लाता हूं और आपको स्नान कराता हूं। उसने कहा- भाई, आज तक आप जो कुछ करते रहे, सो आप तो निमित्त मात्र थे । उदय तो मेरे पाप कर्मो का था । मुझे तो इस बात का -
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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