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________________ महावीर निर्वाण दिवस १७३ चउसट्ठि महापुरिसचरिय मे भी कहा है एवं सुरगण पहामुज्जयं तस्सि दिणे सयलं महोमंडलं दट्ठूण तहच्चेव कोरमाणे जणवएण दोघोसवो 'त्ति पासिद्धि गओ । -- ( च० म० पु० च० पृ० ३३४ ) अर्थात् -- भगवान् महावीर के निर्वाण समय देवो के द्वारा किये गये उद्योतमय महीमडल को देखकर जनपदवासी लोगो ने भी यह दीपोत्सव किया और तभी से यह दीपोत्सव प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ । गौतम को केवलज्ञान आज के दिन ही गौतमस्वामी ने केवल ज्ञानरूपी अनन्तलक्ष्मी को प्राप्त किया था, अत लोग तभी से आज तक आज के दिन लक्ष्मी का पूजन करते चले आ रहे है । हा, इतना परिवर्तन आज अवश्य दिखाई देता है कि लोग ज्ञानरूपी भाव लक्ष्मी को भूलकर अव द्रव्यलक्ष्मी का पूजन करने लगे हैं । आज जितने भी सवत् प्रचलित है, उनमे भगवान महावीर के निर्वाणदिन से प्रचलित यह वीर-निर्धाण सवत् ही सबसे प्राचीन है और सभी भारतवासी और खासकर जैन लोग आज के दिन से ही अपने बहीखातो को प्रारम्भ करते हैं । भारतवर्ष में चार वर्ण वाले रहते है और प्रत्येक वर्ण का एक-एक महापर्व प्रसिद्ध है । जैसे- ब्राह्मणो का रक्षाबन्धन, क्षनियो का दशहरा (विजयादशमी), वैश्यों को दीपावली और शूद्रों की होली । बन्धुओ, आज के दिन बाहिरी दीपको के समान आप लोगो को अन्तरंग मे ज्ञान के भी दीपक जलाना चाहिए । वाहिरी दीपको के लिए तो बाहिरी तेल वत्ती आदि की आवश्यकता होती हे । परन्तु अन्तरंग ज्ञान ज्योति को जलाने के लिए किसी बाहिरी साधन की आवश्यकता नही है । इसके लिए केवल राग-द्वेप रहित होकर आत्म-चिन्तन की आवश्यकता है । जिन महापुरुषो ने अपन घट के भीतर इस ज्ञान ज्योति को जलाया, वे कर्मशत्रुओ को जला कर सदा के लिए अनन्त सुख के धनी वन गये । वि० ० स० २०२७ कार्तिक कृष्णा १५ जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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