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________________ १३० प्रवचन-मुध (जीभ) वश में नहीं रहती है सो सामायिक में बैठते ही बातों का चर्खा चालू हो गया। एक ने दूसरी से कहा कि तेरी बीदणी ने ऐसा कर दिया । अब दोनों में वाक्-युद्ध आरम्भ हुआ और लड़ाई चली। पास में बैठी स्त्री के घर के चावियों का गुच्छा समीप मे रखा था, वह उठ कर एक ने दूसरी स्त्री के शिर में दे मारा और उसके शिर से खून निकालने लगा। अब तो स्थानक में धूम मच गई । समीप ही थाना था । समाचार मिलते ही पुलिम के जवान आये और सामायिक मे ही लड़ने वाली स्त्रियों को गिरफ्तार करने लगे । सारे पाहर में समाचार फैल गया कि सामायिक करते हुए स्त्रियां लड़ी। भाई, यह सामायिक की, या कर्मो की कमाई ? भगवान् ने सामायिक तो समभाव मे बतलाई है । पूछा जाता है कि सामायिक करते समय कपड़े क्यों खोले जाते है। भाई, ये सामायिक के परिकर्म है- ऊपरी काम है ! जैसे दुकान खोलते हो, तो पाल भी बांधना पड़ता है, गादो लगानी पड़ती है और तकिये भी रखने पड़ते हैं। तभी दुकानदार कहलाता है। यदि दुकान नहीं है और कपड़ों की गठरी वांधकर घर-घर और गली-गली फिर कर बेचते हो, तो वह फेरी वाला कहलाता है। भाई, व्यापार तो दो पैसे कमाने के लिये किया जाता है। यदि कोई दुकान लगाकर बैठ और दिन भर में पांच रुपये का घाटा पड़ा, तो वह घाटे में रहा । और यदि फेरी लगाने पर पांच रुपये कमावे तो वह मुनाफे में रहा। इसी प्रकार कपड़े खोलकर सामायिक करने को बैठे और लड़ाईज्ञगड़ा कर आर्त-रौद्रघ्यान किया, तोक्या वह सामायिक कही जायगी? नहीं कही जायगी। आप सामायिक करने को बैठे, कपड़े खोल दिये और बैठ का बिछा दिया। इतने में एक ग्राहक आ गया और कहने लगा कि माल लेना है । उसकी बात को सुनते ही आप दुपट्टा ओढ़ कर चल दिये, तो बताओ आपकी भावना सामायिक मे रही, या कमाई में रही ? इसके विपरीत एक व्यक्ति सामायिक करने को बैठ गया और इतने में ही आड़तिया आया और वोला कि दुकान पर चलो। वह कहता है कि मैं तो यहां से व्याख्यान सुनकर और सामायिक-काल पूरा होने पर ही उठं गा । तब तक ठहर सकते हो तो ठीक है, अन्यथा फिर दूसरे से ले लना । इसी का नाम सामायिक है । आचार्यो ने तो कहा है कि सामायिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि । चेलोपसृष्ट मुनिरिव गृही तदा याति यतिभावम् ॥ अर्थात्- सामाग्रिक करते समय गृहस्य सभी भारम्भ और परिग्रह का । त्याग करता है, इसलिए वह सामायिक के काल में चेल (वाह्य) से लिपटे हुए
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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