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________________ समता और विषमता १२७ किसी से कुछ लेना नहीं और देना नहीं। उनका भाग्य उनके साथ है और तेरा भाग्य तेरे साथ है । तू उनका बुरा नहीं कर सकता है और वे तेरा बुरा नहीं कर सकते हैं। सबका भला-बुरा अपने-अपने उदय के अधीन है, दूसरे व्यक्ति तो उसके निमित्त मात्र बनते हैं। मुझे ऐसे अनर्गल कटुक वचन कहने की क्या आवश्यकता थी। ऐसा विचार कर सरल हृदयबाला उस व्यक्ति के पास जायगा और उससे कहेगा कि भाई साहब, मुझे क्षमा कीजिए, मैंने क्रोध में ऐसा कह दिया जो मुझे नहीं कहना चाहिए था। आपके ये वचन सुनकर उस व्यक्ति के भी हृदय में बड़ा असर पैदा होगा और वह सोचेगा कि इसने मुझसे जो कहा, वह उचित ही कहा है, मेरे हित के लिए ही कहा है। फिर भी ये स्वयं मेरे पास आकर क्षमा याचना कर रहे हैं, यह इनका कितना वडप्पन है, ये कितनी उच्च श्रेणी के व्यक्ति है । इनका सत्संग तो हमें निरन्तर ही करना चाहिए। इनके सत्संग से मेरे में जो त्रुटिया है, वे वाहिर निकल जायेंगी । इस प्रकार आपके सरल व्यवहार से उस व्यक्ति पर उत्तम प्रभाव पड़ा। इससे दोनों को लाभ हुआ, आपकी आत्मा में भी शान्ति आई और उसकी आत्मा को भी शान्ति मिली। दोनों के हृदय में जो अशान्ति की आग जल रही थी, वह शान्त हो गई। __इसके विपरीत यदि कोई विपम प्रकृति का मनुष्य है तो वह कहेगा कि मैंने उससे जो कहा है वह ठीक ही कहा है, वरा नहीं कहा है । यदि वह तुरा मानता है तो मान ले। और बुरा मानेगा तो उसे दंड देने का उपाय भी मेरे पास है। मैं उससे किसी प्रकार भी दवनेवाला व्यक्ति नहीं हूँ ! मैं उसे ऐसा फंसाऊंगा कि वह अपने आप पछाड़ खा जायगा। इस प्रकार से विचार ने वाला विपम धारा का व्यक्ति है। अरे, वह पछाड़ खा जायगा, ऐसा तू पहिले से ही निश्चय करके कैसे वैठ गया? इस प्रकृति का व्यक्ति अपनी विपम धारा में ऐसा फंसा हुआ है कि वह स्वतन्त्र विचार और सरल व्यवहार नहीं कर सकता है । इस प्रकार की विपम धारा वाले व्यक्ति दूसरो को लड़ाकर अपना स्वार्थ-साधन करने में कुशल होते है। क्योंकि वे लोग जानते हैं कि जब तक दूसरों को लड़ाया नहीं जायगा, तब तक हमारा स्वार्थ-साधन नहीं होगा। और जव यह दूसरों से लड़ेगा, तब मैं उसे मार्ग दिखाऊंगा और इससे मुझे ल भ उठाने का अवसर प्राप्त होगा। जब यह फन्दे में फंस जायगा तव आकर कहेगा कि साहब, मेरा यह मामला सुलझाओ। उस समय में इससे कुछ न कुछ हस्तगत कर ही नूगा। इस प्रकार मनुष्य अपनी कुटिल प्रवृत्तियों से अपना ही अनर्थ करता है। मारवाड़ी में कहते हैं कि 'सलू के लिए (धास के
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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