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________________ १२४ प्रवचन-गुधा फल भोगना पडेगा । यह मानव देह बार बार नहीं मिलती है । भर यह अवसर हार लगा है, तो मुये इसका मदुपयोग करना चाहिये, इत्यादि विवार करते हुए वे राज-महल मे पहुचे और जिन निरसगधी लोगो को खाने में डाल रखा था, उनको छोड देने की बाशा दी। जो मदा खोटी मलाह देन वाले हाकिम-हुक्काम थे, उनको तुरन्त नौकरी से अलग कर दिया और उनी स्थान पर भले आदमियों को नियुक्त विया। नगर के लोगों को गुलाकर कहा-भाइयो, आज तब मैंने आप लोगो के साथ जो जोर-जुल्म किये हैं, उनके लिए मैं पाप लोगो से क्षमा याचना करता है। लोग आपचर्य में चकिन होकर सोचने लगे ---आज राजाजी में यह परिवर्तन अचानक कमें हो गया जो पापी से एक धर्मात्मा बन गये । तत्पश्चात् वे रनवास में पहुंचे और रानी को भी मम्बोधन करके मान-वैराग्य की बातें सुनाने लगे। रानी भी विम्मित होकर सोचने लगी---आज महाराज को यह क्या हो गया है ? आज तक तो इन्होने कभी ज्ञान ध्यान की बातें नहीं की है। फिर यह परिवर्तन महमा यो हो रहा है। जब रानी इस प्रकार के विचारो में निमग्न हो रही थी, तभी गजा बोले-रानी जी, आज तो मैं विना मौत के ही प्यास से मर जाता ! जगल मे चारो ओर घोटा दौटाने पर भी कही पानी नहीं मिला। जब मैं निराश होकर एकदम मरणोन्मुख हो रहा था, तभी एक स्थान पर एक साधु को ध्यान करते देखा और उनके समीप ही वृक्ष की शीतल छाया मे उनका पान जल से भर दिखा तब उसे पिया और मेरी जान मे जान आई। यदि जगल मे उनका पानी पीने को न मिलता तो आज मैं जीवित नहीं लीट मकता था। कल तुम भी उनके दर्शनो के लिए चलना। भाइयो, इधर तो राजाजी की यह परिणति हो रही है और उधर जब साधुजी के शरीर से विरचन द्वारा सारा रस-कस निकल गया, तब वोले--अरे, मुन्य आज यह क्या हो गया और मैं क्या बकने लगा था । वे श्रावको को सम्बोधित करते हुए बोले- माज जब मैं जगल मे आतापना लेकर उठा, तब अपने जल के पान को जैसा बाधकर रखा था, वैसा नही पाया । ज्ञात होता है कि कोई उसका पानी पीकर पीछे से मेरे लिए अकल्पनीय पानी उसमें डाल कर चला गया है । यह कह कर उन्होने अपने आप की आलोचना, निन्दा और गर्हा की, अपनी आत्मा को बार बार धिक्कारा । लोग महात्माजों की वात सुनकर धन्य धन्य कहने लगे। ठीक इसी समय राजा साहब भी अपने दल-बल के माथ उपाश्रय म पधारे और महात्माजी को नमस्कार करके बोले-~भगवन्, आज आपकी कृपा से मुझे नया जीवन मिला है । महात्माजी ने पूछापंगे? राजा ने जगल की सारी घटना सुनाकर पहा-महाराज, आज
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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