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________________ १२२ प्रवचन सुधा ऊपर भी कपडा वाधकर छाया मे रख दिया और अपनी आखो पर पट्टी वाधकर और धूप मे बैठकर आतापना लेने लगे । इसी समय शिकार के लिए निकला हुआ एक राजा प्यास मे व्याकुल होकर पानी की खोज मे घोडे को दौड़ाता हुआ वहा पहुचा, जहा पर कि मुनिराज आतापना ले रहे थे । उसने वृक्ष के नीचे वस्न से टके जल वे पात्र को देखा और तुरन्त वस्न हटाकर जल को पी लिया । उसने यह भी विचार नहीं किया कि यह किसका पानी है ओर पीने योग्य भी है या नहीं । भाई, भूख-प्यास की वेदना ही ऐसी तीव्र होती है, कि फिर उस समय उसे कुछ विचार नही रहता है। इसीलिए कहा गया है कि 'भूखा गिने न जुठा भात, प्यासा गिने न धोवी-घाट' राजा को पानी पीने पर शान्ति मिली और वह वही छाया मे बैठ गया । थोडी देर मे उसके दूसरे साथी भी घोडे दौड़ाते हुए वहा का गये । राजा ने उन लोगो से कहा- प्याम से पीडित होकर मैंने इस पान का पानी पिया है, अब अपने साथ जो पानी हैं उसमे से पात्र को भरकर और कपड़े से ढककर रख दो । राजा की आज्ञानुसार पान मे पानी डाल कर उसे ढक दिया गया और सबके माथ राजा अपने नगर को चला गया । मुनिराज तो आतापना लेने मे मग्न थे, उनको इस घटना का कोई पता नही था । जब वे आतापना लेकर उठे और वृक्ष के नीचे गये तो उन्होंने अपना पसीना पोछा और वम्न पहिने | जब पान की ओर दृष्टि गई तो देखा कि जैसा मेने कपडा बाधा था, वह वैसा वधा हुआ नही है । फिर मात्रा -- संभव है - हवा से खुल गया होगा, ऐसा विचार कर उन्होने वह पानी पी लिया । और पान लेकर नगर की ओर चल दिये । चलते-चलते उनके मन मे यह विचार आने लगा वि स्वर्ग और नरक कहा हैं ? मैं किस चक्कर में पड गया ? लोगो के कहने से को वर्वाद किया और धोने में आकर व्यर्थ ही माथा मुडा लिया है । मैंने घर बाप दादो का नाम भी डुबा दिया है। अब तो मुझे यह साधुपना नही पालना है । इस प्रकार बिचारो मै तूफान आगया । सयम से परिणाम विचलित हो गये । जव व नाजार मे होकर उपाश्रय को जा रहे थे, तो ईर्ष्या समिति का भी ध्यान नही था, लोगो ने सामने आकर चन्दन किया तो 'दया पालो' भी नही कहा । लोग विचारने लगे कि आज इनकी गति मति कैसी हो रही है । लोग उनके पीछे हो लिये । तब वे उपाश्रय मे पहुचे तो लोगो ने पूछा --- महाराज, क्या आज आपका जीव सोरा नही है ? उन्होन उत्तर दिया— कैसे नहीं है ? सोरा ही है । फिर बोले- देखो, यह साधुपना कुछ नही है, सब दाग है । हम तो अब इस वेप का परित्याग करके जाना चाहत है | य कुछ
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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