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________________ मनुष्य की शोभा-सहिष्ण ता सज्जनो, मनुष्य का सहनशीलता एक बड़ा भारी गुण है। जीवन में कप्ट और यातना, वेदना और पीड़ा आती है, वह कहने के लिए नहीं, किन्तु सहने के लिए होती है। इस सहनशीलता गुण के कारण ही असंख्य महर्षि, देव, मनुष्य-तिर्यंचकृत और आकस्मिक अनेक उपसर्गो और यातनाओं को सहन करके निर्वाण पद को प्राप्त हुए हैं। गृहस्थी जीवन में भी जो पुरुष सहनशील होता है, उसके सामने कैसी भी परिस्थिति माकर खड़ी हो जाय, उनका वह शान्तिपूर्वक निर्वाह कर लेता है । उसके कारण उसके चित्त में किसी प्रकार का विक्षेप या डांवाडोलपना पैदा नहीं होता है, क्योंकि वह सहनशील है और उसने हर एक प्रकार के कष्ट और आपत्ति को सहन करना सीखा है। उसने अमृत पीना भी सीखा है और विप-पान करना भी सीखा है । निन्दा और बुराई सुनना भी उसे प्रिय है। वह जीवन-मरण, लाभ-अलाभ, यश-अपयश, सधन और निर्धन आदि सभी दशाओं में वह समभावी बना रहता है । वह जानता है कि ये सब अपने पूर्वकृत कर्मों के परिपाक से प्राप्त हुई हैं । अतः शान्ति से सहन करने पर ही इन से मुक्ति मिलेगी । अपनी इस दृढ़तम श्रद्धा के कारण ही वह अपने ध्येय से जरा भी विचलित नहीं होता है । सहनशील पुरुषों को असहिष्णु बनाने के लिए लोग कितना ही प्रयत्न क्यों न करें, पर वह उससे विचलित नही होता है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि सहनशील पुरुपों को अपनी धारा से चल-विचल
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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