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स्तवनावली।
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जीके नंदन, नव वन काटनको प्रनु आरो ॥ पा ॥ ४॥ येह संसार पलाल पुंजको, दह करनको अग्नि कारो ॥ पा ॥ ५ ॥ येह संसार विकट अटवीमें, काम क्रोध दुख देते हैं नारो ॥ ६ ॥ सरण लियो सुत अश्वसेनको, कर प्रनु बातम अव उकारो ॥ पा० ॥७॥
~~~racter--- स्तवन वावीशमुं।
॥ राग भैरवी ॥ नीलवरण प्रनु पासजी विराजे, दरसनथी
दख जाजरे । नील ॥ टेक ॥
जो जात्री प्रल दरसन पावे, फिर मनसें नहीं जावरे || दरस अपूरव कर कर प्राणी, पाप नाश कर जावेरे ॥ नी० ॥ १॥ चार खूट फिर सब जग जोया, दरस ऐसा नहीं होयारे ॥ दाशरथीपुर नीलवपु जिन, मल मेरा सव धोयारे ॥ नी० ॥ २ ॥ जो प्रजुजीका दरस करे नित, नूतन रूप दिखावेरे ॥ नूतन रूपको फल है येही, रूप नवीन फुरावेरे ॥ नी० ॥ ३॥ चित्त एकागर कर कर कोड, दरस प्रनु तन पावरे । ते रजनी सुप