SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- जान जये हम जिन मिलने मन लाइ सखीरी दा० ॥ ५ ॥ ढुढत ढुंढत बंदर गोघे विजु तुम दरसन पारी । निर्यामक तुं कांग्रे मिलियो अब हम क्या परवाश् सखीरी ॥ दा ॥६॥ श्ण कारण तुम नवोदधि कांठे बैठे ध्यान लगारी । करुणासिंधु नव पार करो मुझ चरण सरण तुम आश् सखीरी ।। दा॥७॥ तुम सम तारक को न दीसे त्रिजुवन सगरे मांरी ॥ कौन बैठे नव सायर तीरे पास प्रजु विना सांझ सखीरी ॥ दाण ।। जयो जिन चंद आनंद के दाता सगरे काज सरारी ॥ श्रातम चंद उद्योत कियो है नवोदधि वेग तराइ सखीरी ॥ दा० ॥॥ स्तवन अढारमुं। ॥ राग सोरठ ॥ कुबजाने जादु मारा ॥ यह चाल ॥ शिव रमणी जाऊ मारा, जब पास जिनंद जुहारा ।। शिव ॥ टेक ॥ तिर्यग अमर नर नारक रूपें, सांग धरे अति नारा ॥ मोहकी दोर बंधी गले तोरे, घटमें घोर अंधारा ॥ शिव० ॥ १॥ कुमता रमण नरम
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy