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________________ स्तवनावली | अष्ट दृष्टि जोग साधी जावना त्रिक माइया । कुमति तप्त दूरी सीत जिन बच पाश्या ॥ ८ ॥ मगसर नये सब बार ममता जान महा दुख रासीया । सुत त्रात जाता मित्र जननी जान महा दुख फासिया । कोई न तेरा मीत दुरजन सजन संगी हित करो । इक नेम चरण आधार शिव मग यस मन मांही धरो ॥ ए ॥ पोषे तनु परिवार पर जन मित्त तेरे है नहीं । तमित दमक जू कान करिवर राग संध्या बिन रही । चक्री हलधर शंख तृत जन देख जन देख सुपना रैनका । कोई न थिरता जान अब मन आसरा जिन बैन का ॥ १० ॥ माह मह की वासना मन ज्ञान दरसन में लिया । याम सुमति तप कुठारे करम बिल्लक बेलीया । जारके सब मदन वन घन मोख मार्ग फैलीया । अब देख चंग अखंग राजुल नेम होरी खेलीया ॥ ११ ॥ सील सज तनु केसरी पिचकारीयां सुन जावना । ज्ञान मादल ताल सम रस राग सुध गुण गावना । धूर कमी करम की सब सांग सगरे त्यागीया | नेम आतमराम का धरि ध्यान शिव मग लागिया ॥ १२ ॥ 4 ४७
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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