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स्तवनावली ।
टालके नये निजगुण गामी॥ मल्लि॥४॥गुर्जर देश सुहंकर जोयणी शुन नामी, जिहां विराजे तुंप्रनु करे जगको निरामी॥ मल्लि०॥५॥ करम रोगयुत हुं फीरं शिव पद सुख धामी, जग जश त्यो मुज तारके करो आतमरामी ॥ महिल॥६॥ ॥ इति श्री मल्लिनाथ-जिनस्तवनानि संपूर्णानि ।।
॥ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥
॥ प्रेमला परणी, ए देशी ॥ श्री मुनिसुव्रत हरिकुल चंदा । उरनय पंथ नसायो । स्याहाद रस गर्जित वानी । तत्त्व स्वरूप जनायो। सुन ग्यानी जिन वाणी रस पीजो अति सन्मानी ॥ १ ॥ बंध मोद एकांते मानी, मोद जगत उठेदे । उन्नय नयात्म नेद गहीने, तत्व पदार्थ वेदे।सुन ग्या॥२॥नित्य अनित्य एकान्त गहीने । अर्थ क्रिया सव नासै । उन्नय स्वरूपे वस्तु विराजे । स्याहाद श्म नासै । सुन ग्या॥३ करता जगता वाहिज दृष्टे । एकांते नहिं थावे । निश्चय सुछ नयात्म रूपे । कुण करता जुगतावे | सु० ॥ ४॥ रूप विना नयो रूप सरूपी । एक नयात्म संगी। तम व्यापी विनु एक अनेका ।