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________________ ३८ श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत यो रे । परवंचक गुण चोर । अपथापक पर निंदक मानीयो रे । कलह कदाग्रह घोर ॥ कुं० ॥ ३॥ इत्यादिक अवगुण कहुं केतला रे । तुम सब जानन हार । जो मुऊ वीतक वीत्यो वीतसे रे । तुं जाने करतार || कुं० ॥ ४ ॥ जो जगपूरण वैद्य कहाइयो रे । रोग करे सब दूर । तिनही अपणा रोग दिखाइये रे । तो होवे चिंता चूर || कु० ॥ ५ ॥ तुं मुऊ साहिब वैद्य धनंतरी रे । कर्म रोग मोह काट । रतनत्रयी पथ मुऊ मन मानी यो रे । दीजो सुखनो थाट || कुंo || ६ || निर्गुण लोह कनक पारस करे रे | मांगे नही कुछ तेह । जो मुऊ आतम संपद निर्मली रे । दास जी अब देह ॥ कुं० ॥ ७ ॥ ~ - || श्री अरनाथ जिन स्तवन ॥ || चंद्रप्रभु मुखचंद्र सखी मोने देखणदे, ए देशी || अरे जिनेश्वर चंद सखी मोने देखा दे । गत कलिमल दुख धंद | स० । त्रिभुवन नयना - नंद | स० । मोह तिमर जयो मंद ॥ स० ॥ १ ॥ उदर त्रिलोक असंख में । स० । महरिद नीर निवास | स० । कठन सिवाल अादियो । स० ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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