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________________ श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत अचिरानंदन सुखदाई। जिन गर्ने शांति कराई। सुरनर मिल मंगल गाई । कुरु मंमन २ मारि नसाई॥ ज०॥३॥ जग त्याग दान बहु दीना। पामर कमला पति कीना । सुफ पंच महाव्रत लीना । पाया केवल ज्ञान अश्ना ॥ ४ ॥ जग शां. तिके धरम प्रगासे । नव नवनां अघ सहु नासे। सरूडान कला घट नासे। तुम नाम अरे २ परम सुख पासे ॥ ज० ॥ ५ ॥ तुम नाम शांति सुख दाता । तुं मात तात मुफ जाता । मुऊ तप्त हरो गुण झाता । तुम शांतिक अरे २ जगत विधाता ॥ न ॥ ६ ॥ तुम नामे नवनिध लहिये। तुम चरण शरण गहि रहिये । तुम अर्चन तन मन वहिये । एही शांतिक अरे २ नावना कहिये ॥ नविण ॥ ७ ॥ हुँ तो जनम मरण दुःख दहियो । अब शांति सुधारस लहियो । एक आतम कमल ऊमहियो । जिन शांति अरे ५ चरण कज गहियो ॥ नविण ॥ ७॥ स्तवन बीजूं। ॥ राग कमाच ॥ जिन दरशन आनंद खानी ॥ टेक ॥ राग द्वेष घिन काम अज्ञाना, हास्य नींद
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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