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________________ स्तवनावली। घोर अति गश्यो । कलह कदाग्रह सोर कुगुरु वहु गश्यो। जिन वाणी रस स्वाद के विरले पाश्यो। तऊ किरपा नश्नाथ एक मऊनावना। जिन आज्ञा परमाण और नहीं गावना । पक्षपात नहीं लेस द्वेष किन सू करूं । एही स्वन्नाव जिनंद सदा मन में धरूं ॥ ४॥ किंचित पुन्य प्रनाव प्रगट मुफ देखीये । जिन आणायुत नक्ति सदा मन लेखीये । होन हार सुन पाय मिथ्या मत गंमीये । सार सिद्धांत प्रमाण करण मन मांमीये ॥५॥ एक अरज मुऊ धार दयाल जिनेसरू । उद्यम प्रबल अपार दीयो जग ईसरू। तुक विन कौन आधार नवोदधी तारणे । बिरुद निवाहो राज करम दल वारणे ॥६॥ आतम रूप जुलाय रम्यो पर रूप में | पर्यो हुँ काल अनादि नवोदधि कूप में । अब काढो गही हाथ नाथ मुफ वारीया । पालं परमानंद करम जर कारीया ॥७॥ ॥ श्रीविमलनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ सुंदर चेत बहार सार पाल सरफूले, ए देशी ॥ विमल सुहंकर नाथ आस अब हमरी पूरो। रोग सोग जय त्रास आस ममता सव चूरो। दीजो .
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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