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________________ २८ . श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत औतार बहु वार कीतो । ऊंट का मेगणा खांम लागी जिसो, अंत में स्वादसे नयो फीको । चार गत वास बहु मुख नाना जरे, नयो महा मूढ सिर मौर टीको ॥ सु०॥६॥ सुविधि जिनंद की आन अवधार ले, कुमत कुपंथ सब दूर टारो। पद कदाग्रह मूल नहीं तानियो, जानियो जैन मत सुध सारो । महा संसार सागर थकी नीकली, करत आनंद निज रूप धारो । सुकल अरु धरम दोउ ध्यान को साध ले, आतमा रूप अकलंक प्यारो॥ सुण ॥ ७॥ ॥ श्री शीतलनाथ जिन स्तवन । ॥ बणजारे की देशी ।। शीतल जिनराया रे, विजुवन पूरण चंद शीतल चंदन सारीसो जिनराया रे । जिन । मुज 'मन कमल दिनंद ज्यों लोहने पारसो॥ जि०॥ १॥ जि और न दाता कोय अजय अखेद अन्जेद नो॥ जि । जिण सगरे देव निहार कौन हरे मुजकेदनो ॥ जिण ॥ जिण् गर्जवास दुःख पूर कलमल संयुत थानमें जि। जिण पित्त सलेषम पूर कुःखनरे बहु जानमें॥जिणा३॥जिण्जन मत मुख अपार मोह दशा महा फंदमें ॥ जि०॥ जि० अब
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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