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________________ श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत धरावेरे ॥ ० ॥ १० ॥ आत्मानंदी जिनवर पूजे, विजयानंद पद पावेरे ॥ ० ॥ ११ ॥ ॥ इति श्री अजित जिन स्तवने संपूर्णे || २० || श्री संभवनाथ स्तवन ॥ ॥ हिरणी यव चरे, ए देशी ॥ संजव जिन सुख कारीया ललना । पूरण हो तुम गुण जंमार । पूजा प्रभु जावसे ललना, दुख दुर्गति दूर हरे ललना । काटे हो जन्म मरण संसार । पद कज जो मन लावसे । ललना ॥१॥ प्रथम विरह प्रभु तुम तणो ॥ ल० ॥ दूजो हो पूर्वधर बेद | देखो गति करमनी । ल० । पंचमकाल कुगुरु बहु । ल० । पारथो हो जिनमत बहुद | बात को तरकी ॥ ल० ॥ २ ॥ राग द्वेष बहु मन बसै । ल० । लरे हो जिम सौकण रांग । मूले अति रममें || ल० ॥ अमृत बोर जहर पिये । ल० । लीये हो दुख जिन मत बांग । बांध अति करममें ॥ ल० ॥ ३ ॥ करुणा रस नरे थोरले । ल० । संत हो पर दुख जाननहार । फूले सुख हरममें । ल० । मनकी पीर न को सुने । कैसे हो करिये निरधार । प्रभु तुम
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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