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________________ १७ स्तवनावली | स्तवन पंदरमुं । ॥ राग आइ बसंत ॥ आदि जिनंद दयाल हो, मेरी लागी लगनवा ॥ टेक ॥ विमलाचल मंगन दुख खंगन, मंगन धर्म विसाल हो ॥ मे० ॥ १ ॥ विषधर मोर चोर कामिजन, दरीसन कर निहाल हो ॥ मे० ॥ २ ॥ हुं अनाथ तूं त्रिभुवन नाथा, कर मेरी संजाल हो || मे० ॥ ३ ॥ तम आनंदकंद के दाता, त्राता परम कृपाल हो ॥ मे० ॥ ४ ॥ स्तवन सोलमं । ॥ राग ठुमरी ॥ चलो सजनी जिन वंदन को, विमलाचल पाप निकंदनको ॥ टेक ॥ दरस करत सब पातक जावे, तिर्यग् नरक गति बिंदन को ॥ च० ॥ १ ॥ पूरनवी नव्य न देखे, चूर करण सब धंदनको ॥ च० ॥ २ ॥ आतम रसनर आदि जिनंदा, मूरनसे जव बंधनको ॥ च० ॥ ३ ॥ ॥ इति श्री ऋषभ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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