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________________ २७० श्रीदेवविजयजी कृत-- वासीजी अण् । शुन्न तंदुल वासे उदलासीजी अ । चूरक चजगति चित्त चोखेंजी अण् । पूरी अक्षय सुख लहो जोखेजी अ० ॥ ५॥ पुनरावर्त हरवा हाथेजी अ । नंदावर्त करो रंग साथेजी अ । कर जोमी जिनमुख रहीनेजी अण् । एम आखो शिव दीयो वहीनेजी अ० ॥ ३ ॥ जगनायक जगगुरु जेताजी अण। जगबंधु अमल विनु नेताजी अ । ब्रह्माईश्वर वमनागीजी अ॥ योगीश्वर विदित वैरागीजी अ० ॥४॥ एहवा देवाधिदेवने पूजेजी अ० । जव जवनां पातक धूजेजी अजेम कीर युगल नव पारजी अ०। लहे अदत पूजा प्रकारजी अ० ॥५॥ (काव्यम्) सकलमङ्गलसंभवकारणं, परममततभावकृते जिनम् । सुपरिणाममयैरहमक्षतैः परमया रमया युतमर्चये ॥१॥ ॥ इति षष्ठ अक्षतपूजा समाप्ता ॥ अथ सप्तम फलपूजा। ॥ दोहा ॥ श्रीकार उत्तम वृदनां, फल लेई नर नार । जिनवर आगे जे धरे, सफलो तस अवतार ॥१॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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