SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६८ श्रीदेवविजयजी कृत-- अथ पंचम दीपकपूजा। ॥दोहा॥ निश्चय धन जे निजतएं, तिरोनाव ले तेह । प्रमुख अव्य दीपक धरी,आविरजाव करेह ॥१॥ अनिनव दीपक ए प्रजु, पूजी मांगो हेव । अझान तिमिर जे अनादिनु, टालो देवाधिदेव ॥ ढाल पांचमी। ( झुमखडानी देशी) जाव दीपक प्रनु आगले, अव्य दीपक उत्साहे। जिनेसर पूजीए।प्रगट करी परमातमा, रूप जावो मन माहे ॥ जि ॥ १॥ धूम कषाय न जेहमां, न लिपे पतंगने तेज । जिण् । चरण चित्रामण नवि चले, सर्व तेजनुं तेजरे॥जि०॥२॥ अध न करे जे आधारने, समीर तणे नहीं गम्य । जि | चंचल नाव जे नवि लहे, नित्य रहे वली रम्य ॥ जि॥३॥ तैल प्रक्षेप जिहां नहीं, शुभ दशा नहि दाह । जि० । अपर दीपक ए अरचतां, प्रगटे प्रशम प्रवाह ॥ जिण ॥४॥ जेम जिनमति ने धनसिरि, दीप पूजनथी दोय । जि० ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy