SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाविशी । २६१ आ आ० ||१|| वीर तुं कुंमपुर नयर नूपण हुआ, राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो । सिंह लंबन कनक वर्ण कर सप्त धनु, तुज समो जगतमां को न दुजो ॥ ० || २ || सिंह परे एकलो धीर संयम यहें, आयु वोहोत्तर वरप पूर्ण पाली । पुरी पापायें निष्पाप शिवबहू वर्यो, तिहां थकी सर्व प्रगटी दीवाली ॥ ० ॥ ३ ॥ सहस तुज चउद सुनिवर महा संयमी, साहुणी सहस वत्रीश राजे । यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज न विकनी जीति जाजे ॥ ० ॥ ४ ॥ तुज वचन राग सुखसागरे कीलतो, पील तो मोह मिथ्यात्व वेली । वीओ नावि धरमपथ हुं हवे, दीजियें परमपद होइ वेली ॥ ० ॥ ५ ॥ सिंह निशि दीह जो हृदय गिरि मुज रमें, तुं सुगुणलीह श्रविचल निरीहो | तो कुमतरंग मातंगना यूथथी, मुज नही कोई लवलेश वीहो || आ || ६ || शरण तुज चरण में चरणगुणनिधि ग्रह्मा, जब तरप करण दम शरम राखो । हाथ जोगी कहें जशविजय बुध इश्युं, देव निज जवनमां दास राखो ॥ ॥ ७ ॥ ॥ इति श्रीयगो विजयोपाध्याय कृत चौढ योनी चविशी संपूणी ॥ .
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy