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________________ २५८ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतखाणी ॥ ३ ॥ वली साध्वीनो परिवार, एक तालीश सहस उदार । सुर नृकुटि देवी गंधारी, प्रभु शासन सांनिधकारी ॥ ४ ॥ तुज कीरति जगमां व्यापी, तप तपे प्रबल प्रतापी। बुध श्रीनयविजय सुसीस, श्म दियें नित नित आसीस ॥५॥ श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन । (ढाल फागनी ) समुख विजय शिवादेवी, नंदन नेमिकुमार। शोरियपुर दश धनुषनु, लंबन शंख सफार ॥ एक दिन रमतो आवियो, अतुलीबल अरिहंत । जिहां हरी आयुधशाला, पूरे शंख महंत ॥ १ ॥ हरी जय नरि तिहां आवे, पेखे नेमि जिणंद। सरिखें सम बल परखें, तिहां जिते जिनचंद ॥ आज राज ए हरशे, करशे अपयश नूरि । हरी मन जाणी आणी, तव थश् गगने अपूरि ॥२॥ अणपरण्ये व्रत लेशे, देशे जग सुख एह । हरी मत बीहे ईहे, प्रजुश्यं धर्म सनेह ॥ हरी सनकारी नारी, तव जन मज्जन जति । मान्युं मान्युं परणवू, श्म सवि नारी कहंति ॥३॥ गुणमणि पेटी खेटी, उग्रसेन नृप पास । तव हरी
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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