SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चोविगी। २२९ मोरा स्वामी हुँ याव्यो तुज पास, तारक जाणी गढ्गही जी० । मोरा स्वामी जोतां जगमां दीठ, तारक को वीजो नहि जी ॥ २ ॥ मोरा स्वामी अरज करतां श्राज, लाज वधे कहो केणि परी जी० ॥ मोरा स्वामी जश कहे गोपयतुट्य, जवजलधी करुणा धरी जी० ॥३॥ श्रीसुविधिजिन स्तवन । ( राग मल्हार ) जिम प्रीति चन्द चकोरने, जिम मोरने मन मेहरे । अम्हने ते तुम्हशुं उन्लशे, तिम नाह नवलो नेह ॥ सुविधि जिणेसरु, सांगलो चतुर सुजाण । अति अलवेसरु ॥१॥ अणदी अलजो घणो, दीवे ते तृप्ति न होरे । मन तोहि सुख मानी लियें.वाहलातणुं मुख जो॥सु० ॥२॥ जिम विरह कहिये नवि हुये, किजिये तेहवो संचरे । कर जोमी वाचक जश कहे, नांजो ते नंद प्रपंच ॥ सु० ॥ ३॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy