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________________ चाविशी । २२१ | कल क्ष्य नाव कहायरे ॥ ज० ॥ ३ ॥ श्रय पढ़ दीये प्रेम जे, प्रजुनो ते अनुभवरूपरे । अर स्वर गोचर नहि एतो, माय रूपरे ॥ ज० ॥ ४ ॥ अर थोमा गुण धणा, सज्जनना ते न लखायरे । वाचक जश कहे प्रेमथी पण, मन मांहे परखायरे ॥ ज० ॥ ५ ॥ श्री नमिनाथ जिन स्तवन । श्रीनमि जिननी सेवा करतां, लिय विघन सवि पूरे नासे जी । अष्ट महासिद्धि नवनिधि लीला, आवे बहु महमूर पासे जी ॥ श्री० ॥ १ ॥ मँयमत्ता अंगण गज गाजे, राजे तेजी तुखार चंगा जी । वेटा बेटी वंधव जोगी, लहीये बहु अधिकार रंगा जी || श्री० ॥२॥ वेंब्लज सगम रंग नही जे, अणवाहला होय दूर सहजे जी । वांठातणो विलंब न दूजो. कारज सीजें नूरि सहजेजी ॥श्री० || ३ || चंद्रकिरण यश उज्ज्वल उल्लसे, सूर्य तुल्य प्रताप दीपे जी । जे प्रभु जगति करे नित { जेनो फोर दिवस नाम नधो ते । २ जागवामां जीवामां । ३ कजाय नहि । ४ माया रहित । ४ रूप रहित । ६ अप्रिय । ७ मदमस्त हाथी । ८ पाणीदार सुंदर घोडा। भारनी जोड | १० महादानी मेला |
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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