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________________ स्तवनावली । हो रिखवजी० ॥ ॥ मिथ्या जन नरमायाजी, म्हारा राजरे कांश, कुगुरु वेशे अधिको नाच नचायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥३॥ पुन्य उदय फीर आयाजी म्हारा राजरे कांश, जिनवर नाषित तत्त्व पदारथ पायाजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ४ ॥ कुगुरु संग बटकायाजी म्हारा राजरे कांश, राजनगरमें सुगुरु वेष धरायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ५॥ सघला काज सरायाजी म्हारा राजरे कांश, मनमो मर्कट माने नहीं समजायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी० ॥६॥ कुविषयां संग ध्यावेजी म्हारा राजरे कांश, ममता माया साथ नाच नचावजी, म्हारा राज हो रिखवजी०॥७॥ महिमा पूजा देखी मान जरावेजी म्हारा राजरे कांश, निरगुणीयाने गुणीजन जगमें कहावेजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥॥ बही वारे तुमरे द्वारे आयाजी म्हारा राजरे कांश, करुणासिंधु जगमें नाम धरायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥ए॥ मन मर्कटकुं शिखो निज घर आवेजी म्हारा राजरे कांश, सघली वाते समता रंग रंगावेजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ १० ॥ अनुत्नव रंग रंगीला समता संगीजी म्हारा राजरे
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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