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________________ चाविणी । श्री अजितनाथ जिन स्तवन । ( निदरडी वैरण होइ रही, ए देशी ) अजित जिणंदश्युं प्रीतमी, मुज न गमे हो वीजानो संग के । मालती फूले मोहियो, किम वेसे हो बावलतरु 'भृंग के ॥ ० ॥ ९ ॥ गंगाजल मां जे रम्या, किम छिल्लर हो रेति पामे मॅराल के । सरोवर जल जैलधर विना, नवि याचे हो जग चतकबाल के ॥ ० ॥ २ ॥ को किल कँलकूजित करे, पामी 'मंजरी हो पंजरि संहकार के । ओटा तरुवर नवि गमे, गिरुशुं हो होये गुणनो प्यार के || अ ॥ ३ ॥ कैमलिनी दिनकर कर ग्रहे, वली कुमुपरे चन्दशुं प्रीतके । 'गौरी गिरीश गिरीनवि चाहे हो कमैला निज चित्त के Ր २०५ तम प्रभुश्युं मुज मन रम्युं, वीजाशुं व दायें के। श्रीनय विजय सुगुरू तणो, वाचक जश हो नित नित गुण गाय के ॥ ० ॥ ५॥ < १६ १ भमरो । २ न्हाना तलावमां । ३ यानन्द । ४ हंस । ५ वरसाद । वपैयाँ । ७ मीटुं बोले । ८ आंवानो मोर । श्रवानुं झाड । १० सूर्यविकासी कमलिनी सूर्यना किरण उपर अने पांयणी चन्द्र तरफ प्रीति धरे । ११ पार्वती । १२ महादेव । १३ कृष्ण । १४ लक्ष्मी । १५ पसन्द | ६६ उपाध्याय ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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