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________________ १८७ ___ मुंहलीओ। सखी अंतरगतनी वात सुण सोनागीरे । गुरु गुण गावाने आज मुने रढ लागीरे ॥ आंकण। ॥धन गुरु दाताने धन गुरु देवा। विजय आनंदसूरिरायरे। धन तेहना परिवारनेरे कांई। लली लली लागुं पाय गुरु उपगारीरे । देश शुझ धरम उपदेश उनियां तारीरे । सखी० ॥१॥ पंच महाव्रत लही करिरे । पामी गुरु आदेसरे । पंजाब देश पावन कीयो गुरु । पुरी मननी टेक पुरण प्रीते रे । कीयो ढुंढकनो उच्छेद आगम रीतेरे ॥ सखी० ॥२॥ मरुधर मालव देशमारे । मुनि मंगलनी साथरे । मधुरी वाणीये गाजतारे कांश । करता बहु उपगार आतम हेतेरे । गुरु षटकायके प्रतिपाल संजम लेखेरे ॥ सखी० ॥३॥ हानि गुरुजीना झानथीरे गुण परमतमें थायरे । राणीजीनाराजथोरे । कांश पुस्तक नेटणुं श्राय गुरुने संगेरे । थयो महीमा धरमनो जेह चमते रंगेरे ॥ सखी॥ ॥४॥ गुणवाली गुजरातमारे । ग्राम नगर पुर जेहरे । गुरुजी हमारे गुण बहु कीधो । दीधो धरम उपदेश सांजली बुझारे । केश नव्य जीवना थोक संजम लीधारे ।। सखी॥५॥ सद्गुरु सिद्धाचलजी नेटी । जनमनो लाहो लीधरे । संघ
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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