SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली । १७३ कणी ॥ अश्वसेन वामाजीके नंदा । चरण सेवे चौसठ यंदा ॥ मति ॥ १॥ आसन धारे अधर जिणंदा । पंचमकालमें सुखकंदा । मति ॥५॥ सोहे अंतरिद पाश जिणंदा | ज्युं गगने सूरज चंदा ॥ मतिः ॥३॥ चमतकार चौदिशमें चंमा॥ थाश पूरण सुरतरुकंदा ॥ मति ॥ ४ ॥ ज्यु कमला दिलमें गोविंदा । ज्यु चकोर मनमें चंदा ॥ मति ॥ ५ ॥ त्युं मुज मनमें पाशजिणंदा । नित्य रहो हरो मुख दंदा ॥ मति ॥६॥ जाग्यहीन प्रजु में मतिमंदा । नजर करो जिनवर इंदा ॥ मतिः ॥ ७ ॥ रतनपुरी मालवमें सोइंदा । शेठ मुंगरसी गुणकंदा || मति ॥ ७ ॥ संघ निकाला हरप आनंदा । पुन्यवान् परगट वंदा ॥ मतिः ॥ ए | ओगणिसें अमसठ वर्षे आनंदा । माघ कृष्ण द्वितीया नंदा ।। मति ॥ ॥ १० ॥ वीरविजय कहे पास जिणंदा | नेटी जया परमाणंदा ॥ मति० ।। ११ ।। ॥ श्रीअजित जिन स्तवन ॥ अखियां तम्फ रही मेरी आजके । दरि
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy