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________________ romanwarxnxxmmmmmmmmmmm १६८ श्रीमद्वीर विज्योपाध्याय कृतजात्रा करी सब आनंद पाया ॥ च० ॥ ७॥ तीरथ सेवा नित्य नित्य कीजे । फेर संसारमें नाही नमीजे । वीरविजय कहे सुकृत कीजे । आतम आनंद मुजको दीजे ॥ च ॥ ७ ॥ +- +-- ॥ श्रीवीकानेरमंमन रुषन्न जिन स्तवन । ॥ तुम चिदघन चंद आनंद लाल, ए देशी ॥ तुम आदि जिनंद मारु देवानंद । अब शरण लही प्रजु थारी ॥आंकणी॥ प्रथम नरेश्वर प्रथम जिनेश्वर प्रथम नये उपगारी मोराण ॥ तु॥ १॥ लोक धरम मरजादाकारी । जुगलां धरम निवारी । मोराण ॥ २ ॥ संजमधारी वरस बिनआहारी । विचरया उग्र विहारी । मोरा ॥ तुप ॥३॥ परिसह फोजकुं वेग विमारी । शान खमग कर धारी ॥ मोराण ॥ तु ॥ ४ ॥ शुद्ध उपयोगी अद्लुत जोगी। विषय वासना वारी॥मोरा० ॥ तु ॥ ५॥ अष्टापदपें आसन धारी । वरिया सदा शिव नारी ॥ मोराण ॥ तुं० ॥ ६॥ प्रजुकी महीमा मुखसें कहिवा । जिजमली गई हारी ॥ मोरा ॥ तु० ॥॥ बीकानेरमें आदि जिनंदकी।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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