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________________ १५० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत हेम रूप धारत मेरे जाई ॥ जज ले धरमनाथ एक वारा । आतम हित कर ले तुं प्यारा ॥ औ० ॥ २ ॥ इन बिन और देव नहीं जो । विधिसें धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवन हारा ॥ औ० ॥ ३ ॥ नूतन मंदिर आप पधारो । एही सेवक अरजी अवधारो || घंटारव नौबत जब गाजे । तब सेवकको आनंद जागे ॥ पुरव पुन्य दरिशण पायो । जब में आयो । वीरविजयकी विनती रही । नंद मुजको देह ॥ ० ॥ ५ ॥ ० ॥ 11 हेमनगर में तम या 1 श्री हुशियारपुर मंगन वासुपूज्य जिन स्तवन । ॥ राग खमाच ॥ || आज दुविधा मेरी मिट गई, ए देशी ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हर ली - नोरे ॥ कणी ॥ वासव वंदित पद कज द्वंद | वसुपूज्य राजाके नंद । जविक कमल विकास चंद, तनू रक्त रंगीलोरे ॥ वा० ॥ १ ॥ कामित
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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