SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली । १४१ जारे हजारी॥ सा ||४|| तात मेघ मात मंगला तिहारी, वंश इवागमें हुवो अवतारी । नाव सहित करे नक्ति तिहारी, ते होवे शिव रमणी अधिकारी ॥ सा ॥ ५॥ नगर जेपुरमें आनंदकारी, सुमति जिनेश्वर हे दातारी । लक्ष्मी विजय गुरुआणाकारी,वीर विजय मांगे नवपारी ॥ साक्षा - rimenter-- ॥ राणकपुर मंमन स्तवन.॥ ॥ नेमी सरवनमेने गिरनारी जातां, ए देशी॥ साजन हे राणकपुर महाराज, आज जले नेटिया हो राज, मिथ्या तिमिर अनादरो हो राज ||सागा दूर कीयोमें आज, प्रजु मुख जोवतां हो राज ॥ प्र० ॥ सा ।। १ ।। सेवकरी एक विनतीहो राज ॥ सा ॥ अवधारो महाराय, दया करी माहरी हो राज ॥ द॥ सा ॥२॥ तस्कर च्यार मरामणा हो राज । लाग्या महारी लारके, वेगे निवारजो हो राज ॥ वे ॥ सा ॥३॥ काल अनादि बुंटियो हो राज ॥ सा ॥ श्ण तस्करे मुज नाथ, वात कोण सांजले हो राज ॥ वा० ॥ सा० ॥ ४ ॥ ज्ञान खमग मुज दिजिये हो राज
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy