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________________ श्रीमद्वीर विजयापाध्याय कृत ॥ अथ कलश ॥ ॥ राग रेखता ॥ 1 चौवीस जिनराज में गाया, परम आनंद सुख पाया । प्रभु गुण पार ना पावे, जो सुरगुरु वर्णवा आवे || चौवी० || १ || अलपसी बुद्धि हे मोरी, करी पण वर्णना तोरी । प्रभु तुम मानजो साची, न थाये जगतमें हांसी ॥ चौवी० ॥ २ ॥ मेरी अब लाज तुम हाथे, बांहे ग्रही लिजियें साथे । कहो प्रभु जोर क्या तुमने, जरा उकारतां हमने || चौवी० ॥ ३ ॥ प्रभु चौवीस जगस्वामी, पुरवले पुन्यथी पामी । हरो सब दुखनो घेरो, नसे जरा मनो फेरो | चौवी० ॥ ४ ॥ वेद युग अंक इंडु वर्षे, आषाढ मास शुक्ल पदे । तिथौ जली पूर्णिमा पूरी । जयो सोमवार सुख नूरी ॥ चौवी० ॥ ५ ॥ विजे आनंद गुरु पायो, बहु मन वीर हरषायो । नृगुक पुर चौमासी, रही करी बिनती साची || चौ० ॥ ६ ॥ ॥ १३४
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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