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________________ १२४ श्रीमदीरविजयोपाध्याय कृत-- पूजो । जेथी मन वंबित फल थाय | चाण॥ मेण ॥५॥ तम आनंद दीजो चोरी, इनमें शोला हे प्रनु तोरी । तुं वीरविजयने तार ॥ चा ॥ ॥ मे ॥६॥ श्रीविमल जिन स्तवन । ॥राग करबो ॥ विमल सुहंकर मुजमन वसीया ॥ मु॥ आंकणी ॥ अष्ट करम मल दूर करीने । सतचित आनंद रूप फरसीया ॥ वि० ॥ १॥ अंतरंग करुणा करी स्वामी । देशना अमृत मेघ वरसीया ॥ वि० ॥ ॥ जम चेतनको संग अ. नादि । एक पलकमें उषार धरसीया॥विण॥३॥ वपु संग सब दूर होवाथी । अनुन्नव आनंद रसमें हरसीया ॥ वि० ॥ ४॥ प्रजुकी वाणी अमीय समाण।। पान करी परमानंद वरिया ॥ वि० ॥ ॥ ५ ॥ जब तुम वाणी करणे धारी । वीरविजयकुं आनंद दरसीया ॥ वि० ॥६॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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