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________________ स्तवनावली। अनाथ, मुज पका हाथ, हुं पतित नाथ, धर धर कर लीजो ॥ श्री०॥ १॥ शिर मोद राट, तिन जगमें हाक, सब जग विख्यात, जे न धरे धाक, कर छुःखनों दाट, जग वश कर लीनो ॥ श्री ॥२॥ एक अजब बात, श्न मोहराट, कीये तुमने घात, मुख मारी लात, गई इनकी लाज, थर थर कर दीनो ॥ श्री० ॥३॥ घट अंतर बात, कुण जाणे नात, मुजे मोहराट, दियो फुःख अगाध, कीयो बहु उचाट, दुरगति दुख दीनो ॥ श्री० ॥ ४ ॥ अब मेरी लाज, प्रन्नु तेरे हाथ, सब दुःख निरास, करो सुविधिनाथ, आतमके दास, वीर विजे एम कह्यो ॥ श्री० ॥५॥ श्रीशीतलजिन स्तवन। ॥ राग श्री॥ शीतल जिनपति पूर्णानंद॥शी॥आंकणी। चौमुख समोवसरणमें सोहत, निरखत नविजन नयनानंद ॥ शी ॥ १॥ बत्तिस विध ना. टककी रचना, जोमे शचीपति वहु सुखकंद ॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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