SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तवनावली। कर जोमी ॥ आतम आनंद मुज दीजो । वीरनुं काज सब कीजो ॥ प० ॥ ५ ॥ श्रीसुपासजिन स्तवन। ॥ राग सामेरी ठुमरी का भेद ॥ पूजो रे माई श्रीसुपास जिणंदा । पूजोरे ॥ आंकणी ॥ नवण विलेपन कुसुम धुपथी, दीप धरो मन रंगे ॥ पू०॥ १ ॥ अक्षत फल नैवेद्य धऱ्याथी, दुष्ट करम निकंदे ॥ पू० ॥ ५॥ विधिसुं अष्टप्रकारी पूजन, करतां नवदुख नंगे ॥ पू० ॥३॥ नाटक तान मानसें करतां, तीर्थंकर पद वंधे ॥ पू० ॥ ४॥ जिन पूजा ए सार जगतमें, जाणी करवा उमंगे ॥ पू० ॥ ५ ॥ वीरविजय कहे श्न पुरुषकुं, अविचल सुखमां संगे ॥ श्रीचंप्रनजिन स्तवन । || राग माढ ॥ ॥ जलानी देशी ॥ जीया रे चं प्रजुजिनी मुरती मोहन गारी रे । जयकारी महाराज चंऽप्रजुजिनी मुरती
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy