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________________ पदो । पद नवभुं । ॥ राग षट् ॥ इंद्री, पर गुन चली ॥ इनही के समज समज वश मन संगी न होरे सयाना । समज०॥ वश सुद्ध बुद्ध नासी । महानंद रूप जुलाना || सांग धार जग नट वत नाच्यो । माच्यो पर गुन ताना || वश कर० ॥ १ ॥ चार कषायां इन संग चाले । चंचल मन हि नराना | मोह मिथ्या मद मदन हिया | साथे हि मूर अज्ञाना | वश कर० ॥२॥ तुं चाहे संयम रस राखुं । धरुं शिर वीरनी आना । उलट उलट्ये करे तुज मनकुं । नासे मनोरथ माना || वश कर० ॥ ३ ॥ चामक मन तनकों उकसावे । मारे जरमकी खाना । मृग तृसना वत दोमी फिरत है । करी कल्पना नाना ॥ वश कर० ॥ ४ ॥ तमराम तुं समज सयाने । कर इंद्रिय वसदाना ॥ पीके - नंद रस मगन रहो रे । नीको मील्यो अब टाना ॥ ॥ वश कर० ॥ ५ ॥ १११
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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