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________________ द्वादश भावना। - यावे, आश्रव जिनमत गाना रे ॥ आश्रव० ॥१॥ मैत्र्यादि जावना वासित मन, पुन्याश्रव सुखदाना रे । विषय कषाये पीडित चेतन, पापे पीक जराना रे ॥ आश्रव० ॥ ५ ॥ जिन आगम अनुसारि वचने, पुन्यानुबंधी पुनाना रे। मिथ्यामत वचनें करी आवे, पापाश्रव दुःख थाना रे ॥ आश्रवण ॥३॥ गुप्त शरीरसे पुन्य सुहंफर, करे जगवासी सियानारे । हिंसक षट्काया जंतु, जगमें पाप कराना रे ॥ श्रव० ॥३॥ । कषाय विषय परमादा, विरति रहित हि । अज्ञाना रे । मिथ्या दरसनी आरत रोधी, पाप कर सुखहाना रे ॥ आश्रव० ॥ ५ ॥बातम सदा सुहंकर निर्मल, जिन वच अमृत पाना रे। करके जीव सदा निरंगी, पाम पद निरवाना रे॥ आश्रव० ॥६॥ अथ आठमी संवर जावना। ॥ राग बिहाग ॥ जिनंद वच संवर सुनरे सुझानी ॥ आंचली ॥ सब आश्रवको आवत रोके, संवर जिन
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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