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________________ ७८ श्रीमदावजयानदार कृत-- वदन चंद ज्युं शीतल सोहे, अमृत रस मयी वानी ॥ जि ॥ १ ॥ चिदानंद घन अजर अमर तुं, ज्योतिमें ज्योति समानी ॥ जि ॥ ॥५॥ श्रेणिक नरपति पदकज सेवी, जिनवर पद उपजानी ॥ जि० ॥ ३ ॥ आतम आनंद मंगल माला, अजर अमर पद खानी॥जि० ॥४॥ स्तवन आग्मुं। ॥राग माढ ॥ प्रीत लागी रे जिनंदगुं प्रीत लागी रे || यांचली। जैसे धेनु वन फिरेरे, मन वढरे केरे मांह। चरण कमल त्यूं वीर केरे, बिन कही विसरत नाह ॥ जिनंद ॥ १ ॥ विंध्याचल रेवा नदी रे, गज वर नूलत नाह॥ मनमोहन तुम मूरति रे, सिमिरत मिटे फुःख दाह ॥ जिनंद ॥२॥ तें तार्यो प्रनु मोहको रे, हरि जवसागर पीर ॥ झान नयन मुजे तें दीये रे, करुणा रस मय वीर ॥ जिनंद ॥ ३ ॥ कोमि वदन कोमि जीनसें रे, कोमी सागर पर्यंत ॥ गुन गाउं तेरे
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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